Soniya bhatt

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कृष्ण बलराम




 कृष्ण बलराम

 (कृष्ण और बलराम नामकरण संस्कार)
       

        एक बार वसुदेव की प्रार्थना पर यादवों के कुलगुरु श्री गर्गाचार्य जी गोकुल में आए। और नन्द बाबा  ने इनका स्वागत किया। नन्द बाबा बोले गुरुदेव आप बड़े भाग्यो से इस गोकुल में आये हो। आपसे एक प्रार्थना है की मेरे दो लाला है उनके अभी तक नामकरण नही हुए है। आप उनका नामकरण कर दीजिये।

        गर्गाचार्य जी ने कहा की मैं आपके बच्चो का नामकरण नही करुगा?
        नन्द बाबा बोले की क्यों? हमसे सेवा में कोई गलती हो गई?
        नन्द बाबा गलती नही हुई है। अगर मैंने आपके बालको का नामकरण किया और ये बात मथुरा में कंस को पता चल गई तो वो मुझे दण्डित करेगा। आपके कुल पुरोहित है शांडिल्य मुनि। आप उनसे नामकरण करवा लीजिये।

        नन्द बाबा बोले की महाराज आप त्रिकालज्ञ है, ज्ञानी है और हमारे इच्छा आपसे नामकरण करवाने की है। गुरुदेव आप सोच रहे होंगे की हम सबको बुलाएंगे और उत्सव मनायेगे। तो हम एकांत में नामकरण करेंगे और किसी को नही बुलाएंगे।

        जब ये बात गुरुदेव ने सुनी तो खुश गए। और गुरुदेव को गौशाला में लेकर गए। पूजन किया।

        दोनों माताओ को खबर दी की गर्गाचार्ये जी आये है आप दोनों अपने अपने लालाओं को लेकर आ जाओ। दोनों माताये लालाओं को लेकर आ रही है।
        रस्ते में यशोदा रोहिणी जी से कहती है बहन आपको पता है हमारे गुरुदेव त्रिकालज्ञ है। तीनो कालों के बारे में जानते है। आज हम इनकी परीक्षा लें ले।

        रोहिणी(Rohini) बोली यशोदा तेरे मन में क्या बात आ रही है? हम पढ़ी लिखी नही है। इतने बड़े संत की परीक्षा कैसे ले।
        यशोदा बोली की बस इतना करना है आप मेरे लाला को ले लो और मुझे अपना लाला दे दो।

        दूर से नन्द बाबा देख रहे है और कहते है की अरे आज कितना पवित्र दिन है इनको अपने अपने लालाओं को साथ लाना चाहिए और ये एक दूसरे के लालाओं को लेकर आ रही है। नन्द बाबा सोच रहे है की कहीं भूल से तो नही कर रही ह ये? नन्द बाबा के मन में भी यही आया की चलो कोई बात नही आज में भी गुरूजी से पूछुंगा की कोनसा बालक किसका है।

        अब जब बैठ गए है सब तो गुरुदेव ने गणेश जी महाराज का पूजन किया। पूजन करके पूछा की नन्द जी बताइये अब पहले किस बालक का नामकरण करुँ?
        और नन्द बाबा बोले की गुरुदेव, आप पहले उस बालक का नामकरण करो जो यशोदा की गोद में बैठा है।

        (बलराम नामकरण संस्कार )

        गुरुदेव कहते है- नन्द! ये बैठा तो यशोदा की गोद में है लेकिन यशोदा का बालक नही है ये रोहिणी जी का लाला है। इनके अंदर बल बहुत होगा तो इनका एक नाम रखा है बल । और ये सबको आनंदित करने वाला होगा इसलिए इन्हे राम  भी कहा जायेगा। बोलिए बलराम(Balram) जी महाराज की जय। यह रोहिणी का पुत्र है इसलिए इसका नाम होगा रौहिणेय । संकर्षण के माध्यम से यह देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में आया है इसलिए इसका एक नाम संकर्षण भी होगा।

        गुरुदेव आपने बहुत सुंदर नाम रखे है अब इस लाला का नाम भी रख दो।

        (श्री राधा रानी नामकरण संस्कार)

        (कृष्ण नामकरण संस्कार )

        इसके बाद गर्गाचार्यजी ने यशोदानंदन का नामकरण किया-नंदलाल को देखते ही गर्गाचार्यजी का चेहरा खुशी से खिल उठा।
        उन्होंने कहा- यशोदा यह जो सांवलेरंग का तुम्हारा पुत्र है। यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है। पिछले युगों में इसने क्रमश: श्वेत, रक्त और पीत-ये तीन रंग स्वीकार किए थे। अब की यह कृष्णवर्ण हुआ है। इसलिए इसका नाम कृष्ण होगा। कृष्ण का मतलब है जो अपनी और खींचे। एक बार जो आपके लाला का दर्शन करेगा वो बस इनकी और खिंचा जायेगा। एक बार और बताऊ नन्द आपका ये लाल साक्षात् नारायण  है।

        अब तक भगवान चुप बैठे थे लेकिन जैसे ही गुरूजी ने कहा तो कृष्णा लाल लाल आँखे निकलने लगे।

        गुरूजी ने देखा तो इशारे से पूछा प्रभु मैंने कुछ गलत कहा? क्या आप नारायण नहीं हो?

        कृष्णा कह रहे है गुरूजी अगर आप मेरे माता पिता को कहोगे की में साक्षात् भगवान हु, नारायण हूँ तो गजब हो जायेगा। मेरे लिए एक छोटा सा मंदिर बनवायेंगे और मूर्ति की जगह मुझे बिठा देंगे और सूखे सकल पारे भोग लगायेगे और जो लीला में करने आया हूँ माखन चोरी की वो धरी की धरी रह जाएगी। इसलिए आप मन कर दो की मैं नारायण नहीं हूँ।

        गुरुदेव बोले भगवन आप नाराज क्यों होते हो, ब्राह्मणों को बात पलटने में कितनी देर लगती है अभी पलट देता हूँ।

        नन्द बाबा सोच रहे है गुरुदेव ने हमारे लाल को नारायण कह दिया। क्या हमारा लाला सच में भगवान है?

        तभी गुरुदेव कहते है की नन्द बाबा आपका लाला नारायण नहीं है।
        नन्द बोले हाँ गुरुदेव में भी यही सोच रहा हूँ मेरो लाला नारायण कैसे हो सके है? शयद मेरे लाला में नारायण जैसे कुछ गुण आ गए है तभी आपने नारायण कह दिया होगा।

        हाँ नन्द बाबा आपके लाला में कुछ नारायण जैसे गुण आ गए है।

        नन्दजी! यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वसुदेवजी के घर भी पैदा हुआ था इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे वसुदेव भी कहेंगे।
        तुम्हारे पुत्र के और भी बहुत से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं। इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं। मैं तो उन नामों को जानता हूं, परन्तु संसार के साधारण लोग नहीं जानते। यह अपनी लीलाओं से सबको आनंदित करेगा और दुष्टों का सर्वनाश करेगा।

        इस प्रकार  भगवान के नाम रखे गए कृष्ण और बलराम

        फिर दान – दक्षिणा दे कर नन्दबाबा ने श्री गर्गाचार्य जी को विदाई दी है।

        दोनों माताएं जब अपने-अपने लाल को अंदर लेके जाने लगी तो रोहिणी जी से यशोदा ने पूछा बहन तुम्हे याद है हमारे गुरुदेव ने क्या नाम रखा?

        रोहिणी बोली यशोदा सच कहती हूँ की मैं नाम भूल गई। गुरूजी ना जाने क्या टेढ़ो सो नाम रख गए। अब कब आवेंगे।

        हमारे लालाओं का नामकरण हो गया हो जब गुरुदेव दोबारा आयेगे तब गुरूजी से पूछ लेंगे।

        लेकिन हमें कुछ नाम से तो लालाओं को बुलाना पड़ेगा। रोहिणी मैया बोली यशोदा देख बहना मैंने तो अपने लाला को नाम बलुआ धर लियो है। आपने बलुआ धर लियो है तो मैंने कनुआ धर लियो है। ये ठाकुर जी के प्यार के नाम है बलुआ और कनुआ।

        इस तरह श्री कृष्ण और बलराम जी का नामकरणसंस्कार पूर्ण हुआ।

        ((बोलिए कृष्ण और बलराम की जय )



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